By Shashi Sharma

वो एक एहसास हो तुम
साहिल पर खड़े खड़े
जब नरमी से लहरें आकर
पैरों को छूने से जो होता है
तपती धूप में बर्फ को छूने से
जो ठंडक भरा सुकून होता है
सर्द ठिठुरती शाम में
अलाव के पास जाकर जो होता है
दिलो दिमाग़ शरीर भर की थकान के बाद
ठंडी घास में बैठकर ठंडी हवा के छूने
से जो होता है
बदलते मौसमों में रात को
छत पर जाकर चाँद को ताकने से
जो महसूस होता है
पहली और हर बारिश में भीगने से
इंद्रधनुष देखने से
शाम को सूरज की लालिमा देखने से
फूलों को खिलता देखने से
चाहे रेगिस्तान में नंगे पाँव चलने से
जो राहत महसूस होती
वो एक एहसास हो तुम …
Soulful Shashi
Ehsas aisa tum deti ho humein
Beautiful
Essence-sually beautiful poem Shashi!
Beautiful and soul touching poem