एहसास हो तुम – Delhi Poetry Slam

एहसास हो तुम

By Shashi Sharma

वो एक एहसास हो तुम

साहिल पर खड़े खड़े
जब नरमी से लहरें आकर
पैरों को छूने से जो होता है

तपती धूप में बर्फ को छूने से
जो ठंडक भरा सुकून होता है

सर्द ठिठुरती शाम में
अलाव के पास जाकर जो होता है

दिलो दिमाग़ शरीर भर की थकान के बाद
ठंडी घास में बैठकर ठंडी हवा के छूने
से जो होता है

बदलते मौसमों में रात को
छत पर जाकर चाँद को ताकने से
जो महसूस होता है

पहली और हर बारिश में भीगने से
इंद्रधनुष देखने से
शाम को सूरज की लालिमा देखने से
फूलों को खिलता देखने से
चाहे रेगिस्तान में नंगे पाँव चलने से
जो राहत महसूस होती
वो एक एहसास हो तुम …


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