By Shashi Bisht

एक शब्द में निहित,
मेरा अखिल संसार है ।
हूँ ,तुम्हारी भाग में ,
इसका मुझे अभिमान है।
चलना,बोलना और पढ़ना,
तुमने ही तो है सिखाया।
कुंठा हाथ लगने पर ,
मनोबल तुमने ही बढ़ाया।
मेरी प्रत्येक उपलब्धि पर ,
सहसा पुलकित तुम हो उठती।
और मेरे साकार स्वप्नों में,
तुम स्वयं को ही देखती ।
तुम्हें गौरवान्वित करना,
रहा सदा ही ध्येय मेरा।
मेरा सहज व्यक्तित्व है ,
फल तुम्हारे परिश्रम का।
छोड़ तुम्हें ससुराल जाना,
था ,विषम मेरे लिए।
पर नवीन संसार रचना ,
भी सिखाया,तुम्हीं ने।
जब स्वयं मैं “माँ “बनी,
सन्निकट तुमसे हो गई ।
तुम्हारे अनुभवों की छांव में,
वात्सल्य पथ पर अग्रसर हो गई।
तुम्हें प्यार से “नन्दू “पुकारना ,
फिर तुम्हारा खिलखिलाना।
नित्य तुमसे बात करना,
किसी सुखद अनुभूति से कम नहीं।
जानती हो माँ,कब,
हिय हर्षित हो उठता है।
जब लोग मुझसे यह कहें,
मुझमें,तुम्हारा प्रतिबिंब दिखता है।