माँ – Delhi Poetry Slam

माँ

By Shashi Bisht

 

 

एक शब्द में निहित,
मेरा अखिल संसार है ।
हूँ ,तुम्हारी भाग में ,
इसका मुझे अभिमान है।

चलना,बोलना और पढ़ना,
तुमने ही तो है सिखाया।
कुंठा हाथ लगने पर ,
मनोबल तुमने ही बढ़ाया।

मेरी प्रत्येक उपलब्धि पर ,
सहसा पुलकित तुम हो उठती। 
और मेरे साकार स्वप्नों में, 
तुम स्वयं को ही देखती ।

तुम्हें गौरवान्वित करना,
 रहा सदा ही ध्येय मेरा।
मेरा सहज व्यक्तित्व है ,
फल तुम्हारे परिश्रम का।

छोड़ तुम्हें ससुराल जाना, 
था ,विषम मेरे लिए।
पर नवीन संसार रचना ,
भी सिखाया,तुम्हीं ने।

जब स्वयं मैं “माँ “बनी,
सन्निकट तुमसे हो गई ।
तुम्हारे अनुभवों की छांव में, 
वात्सल्य पथ पर अग्रसर हो गई।

तुम्हें प्यार से “नन्दू “पुकारना ,
फिर तुम्हारा खिलखिलाना। 
नित्य तुमसे बात करना,
किसी सुखद अनुभूति से कम नहीं।

जानती हो माँ,कब,
हिय हर्षित हो उठता है। 
जब लोग मुझसे यह कहें, 
मुझमें,तुम्हारा प्रतिबिंब दिखता है।


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