मैं ज़माने से लड़ती रही – Delhi Poetry Slam

मैं ज़माने से लड़ती रही

By Shalini Maurya

मैं ज़माने से लड़ती रही ,
ख़ुद को साबित करती रही

कश्मकश में पड़ी रही,
रिश्तों की गठजोड़ी लिए मैं चलती रही..
किसी ने खुदगर्ज बताया ,
किसी ने बुरा बताया,
पर मैं ख़ुद को साबित करती रही ..

सबकी पसंद को अपनाए मैं बनी रही ,
सबके दर्द का मरहम मैं होती रही ..
किसी ने दिखावा बताया ,
किसी ने पराया बताया ,
पर मैं ख़ुद को साबित करती रही ..

बेटी किसी और की मन को भाती नहीं,
इसलिए अपनी वो कभी कहलाती नहीं ..
एक अर्सा बीत गया सबको रिझाया ,
हार नहीं मानी सबको मनाया..
रिश्तों के ताने बाने में उलझी रही ,
पर मैं ख़ुद को साबित करती रही..

अब मैं थक गई ..
उम्र भी थोड़ी ढल गई..
सोचती हूँ शायद ये जीवन कम था ,
नहीं तो जीत लेती वो भी जो तम (अंधकार)था..
ज़माने से लड़ती रही ,
ख़ुद को साबित करती रही । 


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