“वो दिन भी कितना सुन्दर था “ – Delhi Poetry Slam

“वो दिन भी कितना सुन्दर था “

By Shalini Kashyap

वो दिन भी कितना सुन्दर था,
जब मुझको ये जीवन था मिला l
कितना नन्हा सा बच्चा था,
माँ के आँचल में अच्छा था l
कोई प्यार से मीठे बोल कहे,
उसके पास ही जाता था l
लाख बुलाये माँ मुझको,
पर मैं तब भी ना आता था l
जब चलना मैंने सीखा था,
घुटनों को बहुत घसीटा था l
सब देखें मुझको मुड़-मुड़ कर,
बस यही तो मैंने सीखा था l
फिर बड़ा हुआ और पढ़ने गया ,
मानो दुनिया में रमने गया l
फिर दुनिया की ये चंचलता,
मुझको तो इतनी भाने लगी l
हर फूल के पीछे भगा मैं,
और प्यारी ये जिंदगानी लगी l
एक रोज़ जो मैंने नाम सुना,
वो राम-राम का नाम सुना l
करके उसको अनदेखा फिर भी ,
मैंने फिर से वही काम चुना l
एक रोज़ जो मैंने कीर्तन करते,
लोगों से मुँह मोड़ा था l
हाँ उसी समय मैंने भक्ति से,
अपना रिश्ता तोड़ा था l
फिर मौज में मैंने सोचा नहीं कुछ ,
और सारा समय गँवाया था l
मैं भ्रम में था उस क्षण को बस,
और हाथ कुछ नहीं आया था l
पर जब से मैं था बड़ा हुआ ,
संसार के पीछे पड़ा हुआ l
एक रोज़ जो सपना देखा था,
आकर उसपर ही खड़ा हुआ l
नए लोग मिले नई बात हुई,
और पैसे की बरसात हुई l
उस दिन से मुझमें थोड़ी ही सही,
अहम् की शुरुआत हुई l
एक रोज़ जो मैंने राधे-राधे,
कहते लोगों को सुना था l
भुला के मैंने फिर से उन को,
अपने ही अहम् को चुना था l
फिर क्षण बीते विवाह हुआ,
सुन्दर पत्नी का साथ हुआ l
सब उम्र बिताई फिर मैंने ,
बस उसको खुश कर जानें में l
और रूपया बहोत कमाने में,
कुछ धर्म-कर्म के काम किये,
और फॉलोवर्स भी अपने नाम किये l
खुश था मैं बहुत बन गया पिता,
और समय कर्त्तव्य पूर्ति में दिया बिता l
सब इच्छा पुत्र की पूरी की,
आत्मउन्नति नहीं जरुरी थी l
सब सुख के साधन पास थे मेरे,
और कमी ना कोई लगती थी l
उस समय की मेरी एक यही ,
बस यही एक ही गलती थी l
जीवन में इतना व्यस्त रहा ,
और जीवन से भी त्रस्त रहा l
उस परमपिता परमेश्वर को,
मुझे भजने का ना वक़्त रहा l
जीवन की शाम भी आने लगी,
बेटे की जिंदगी मुझे दोहराने लगी l
मैं फिर से उलझ गया इनमें,
और जुल्फें रंगी जानें लगीं l
मैं उम्र को धोखा देता रहा,
पर उम्र कहाँ कभी रूकती है l
बी पी, शुगर और अर्थारइटिस,
इन्हें साथ में ले के चलती है l
एक दिन यूँ अचानक हार्ट फेल से,
ऑंखें मेरी बंद हुई l
सब छोड़ दिया एक ही पल में,
मेरी दुनिया वहीं समाप्त हुई l
मैं दौड़ा इस जग के पीछे,
और कुछ ना मेरे पास रहा l
बस भ्रम के पीछे भगा था,
और पास में जीवन काल रहा ll

शालिनी कश्यप


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