By Savan Parmar

दीप की ज्योति शुभ निशानी,
स्नेह, श्रद्धा, प्रेम की वाणी।
यज्ञ, हवन या पूजन थाली,
दीप बिना अधूरी लाली।
ऐसा ही मेरा जीवन है,
तुम बिन यह विरहानल है।
मेरे जीवन की तुम दीप,
उजियारे की आस तुम्हीं हो।
जग के इस भवसागर में,
मेरी नैया, तुम ही मांझी।
तर पाऊँगा एक शर्त पर,
संग तुम्हारे चलना होगा।
मेरी दुनिया की तुम देवी,
चरणों में अर्पित पुष्प हूँ मैं।
पवित्रता है दीप जैसी,
जीवन का आशीष तुम्हीं हो।
पास नहीं तुम मेरे फिर भी,
तुमको हरदम पास जीया है।
दूर रहो या पास रहो तुम,
मुझ पर तो उपकार किया है।
मुझको है मालूम कि तुम भी,
गीत किसी के गाती हो।
फिर भी मेरे जीवन का तो,
एकमात्र संगीत तुम्हीं हो।
जब तुमको देखा था मैंने,
तब से ही यह जान लिया था।
अब मेरे दिल के मंदिर में,
तुम ही विराजमान रहोगी।
जीवन पथ का दीप तुम्हीं हो,
हर तम में संगीत तुम्हीं हो।
हर आहट में स्पंदन जैसे,
हर साँस में गूँज तुम्हीं हो।
चाहे मिलन हो या विरह हो,
साथ तुम्हारा हरदम पाया।
तुम्हारी यादें दीप जैसी,
हट चुका है दुःख का साया।
जो कुछ भी मैं लिख रहा हूँ,
जो कुछ भी मैं लिख चुका हूँ,
सब पर है अधिकार तुम्हारा,
गीतों का आधार तुम्हीं हो।
आँखें मूँदूँ दिखती तुम ही
सपनों में भी साथ हो जैसे
साँसों में हर पल बसती हो
बनकर मधुर सुवास जैसे
तुमसे इतना दूर होकर
कैसे अब तक जीया हूँ
जो मैं अब तक जीया हूँ
मेरी जीवन-ज्योत तुम्हीं हो
कभी समय जो साथ निभाए
फिर से राहें मिल जाएँगी
जो अधूरा सा रह गया है
बातेँ सारी कर जाएँगी
मुझको कुछ भी पाना नहीं है
ना ही डर कुछ खोने का
लेकिन फिर भी मेरे दिल का
आखिरी अरमान तुम्हीं हो
मैंने जीवन खर्च किया है
या कह दूँ कि व्यर्थ किया है
सपनों से कुछ अर्थ था पाया
अर्थ का अनर्थ किया है
मुझको हत्यारा कह दो
मैं सपनों का कातिल हूँ
लेकिन दूर कहीं उपवन में
बची रहीं जो साँस तुम्हीं हो
मैंने दुनियाँ लड़ते देखी
धर्म-जात पर मरते देखी
पुण्य स्थली पर भी मैंने
खून की नदियाँ बहते देखी
लगाए बैठे हैं आस सभी
सबको है विश्वास यही
ख़ुदा ज़मीं पर आएंगे
मेरा तो विश्वास तुम्हीं हो।"