By Sangita Bahuguna

कौन खजाना लुटा गया है
कौन खजाना लुटा गया है, तेरी मुस्कानों पर ।
कौन मिट गया घुलकर तेरी, मीठी सी बातों पर ।।
किसने दी रक्तिम कपोल पर,सर्द हवा की थपकी ।
किससे बातें करती तेरी, लड़ी केश की खुलकर ।।
किससे नैन सजल होते हैं ,कौन चुराता काजल ।
कौन है भरता स्वप्न सुनहरे, नैन, धूप से धुल कर ।।
कौन हास करता होठों पर, ऋतु बसंत सरसाता ।
कौन तुम्हारे मद में भरकर, हंसता है अब गुल पर ।।
किसकी बोली दंत पंक्ति पर, बैठ दामिनी दमकी ।
किसकी बातें हुई निछावर , मिश्री जैसी घुलकर ।।
कौन हथेली पर उसकी वह, नर्म छुवन रखता है ।
कौन है खोता सुध बुध पग पर, घुंघरू जैसा तुलकर ।
कौन गीत गाकर मन का, संगीत सुना जाता है ।
कौन छलक जाता है हृदय से, कविता जैसी बहकर ।।
रचनाकार----
संगीता बहुगुणा
गौचर चमोली उत्तराखंड
2-----* कोई *
मन के द्वारे पर खड़ा है, मुस्कुराता सा कोई ।
धड़कनों की थाप देकर, खटखटाता है कोई ।।
बंदिशों की सांकलों को, धीमे - धीमे खोलकर ।
भोर सा खिड़की से मेरी झांक जाता है कोई ।।
नेह से रंगता दरो- दीवार मेरे चित्त की ।
ख्वाहिशों की तोरणें , नयनों सजाता है कोई ।।
जिंदगी, जीने की जद्दोजहद से है जल रही ।
दग्ध मन पर मेघ बन, चौमास लाता है कोई ।।
मेरे अरमानों की चादर, पर कपासी डोर से ।
अपने स्पर्शों के मोती, काढ़ जाता है कोई ।।
शोखियां बसती है उसकी, हर अदा में आजकल ।
सुर्ख लाली कपोलों पर,खिल झलकता है कोई ।।
जब भी नीरवता कहीं, निशब्द करती है कभी ।
मौन को निज शब्द लेकर गुनगुनाता है कोई ।।
स्वरचित ---
संगीता बहुगुणा
गौचर चमोली
3---------*इसीलिए*
किंचित खबरें ह्रदय पटल पर, रोज नई सी ही लगती है ।
इसीलिए अखबार पुराना, कभी-कभी मैं पढ़ लेती हूं ।।
जीवन के दुर्धर संघर्षों , में कब आ जाए मरुथल भी ।
इसीलिए आंखों पर थोड़ा-थोड़ा सावन रख लेती हूं ।।
जज्बातों पर यहां उम्र की, सलवट कब पड़ने पाती है ।
इसीलिए मुमकिन याराना, अपनों के संग गढ लेती हूं ।।
सुना है कालिख हीरा बनती,पाषाणों में वर्षों दबकर ।
इसीलिए कुछ तम जीवन के, रोज दबा कर रख लेती हूं ।।
बड़े - बड़े लक्ष्यों की मंजिल, जाने कब जीवन में आए ।
इसीलिए छोटी ख्वाहिश पर, जश्न मना कर जी लेती हूं ।।
कहते सूरत पर रहती है, सीरत सदा सर्वदा भारी ।
इसीलिए दर्पण के संग निज, हस्ती को भी तक लेती हूं ।।
कहते सारा दर्द बता दो, तो यह दुनिया हंस देती है ।
इसीलिए सीने के कुछ- कुछ जख्मों को मैं सी लेती हूं ।।
रोज सुबह ही नई चुनौती, मुंह बाये दरवाजे होगी ।
इसीलिए बीती बातों को, रात दफन मैं कर लेती हूं ।।