By Sangeeta Kaur
सोचा आज किसी मित्र को फोन लगाऊं
और अपने मन का हाल बताऊँ।
कई लोग मन में भी दिमाग रखते हैं,
उनसे तो न कह पाऊंगा।
यार दोस्त सभी तो मशरूफ हैं ज़िन्दगी की भाग दौड़ में।
मेट्रो और तकनीकी उन्नति ने हालात बदले हैं,
हवाई तितलियों ने संस्कारों को निचोड़ रखा है।
इसी भागदौड़ में मानसिक और सामाजिक दायित्व कहीं दिखाई नहीं देते।
अपनी सुंदर दुनिया में जब हम हदों का उल्लंघन कर
दुविधाओं को आमंत्रण देते हैं,
तो प्रकृति जो सारा कार्यभार संभाले बैठी है,
युगों-युगों से उस धरती का बलिदान…
जब हमारे बच्चे सवाल करेंगे,
तो क्या उत्तर देंगे हम?
हमें अति रूपी दानव को बाहर फेंकना होगा,
और इस आंतरिक भावनाओं का मंथन कर नया इतिहास रचना होगा।
हिमालय बनकर, कैलाश पर्वत बनकर,
अपनी नदियों के पवित्र जल को
तनावों से मलिन होने से दूर रखना होगा।
नवीनतम विचारों का आदान-प्रदान कर
इस दिशाहीन विकास को रोक,
पूर्णविराम का चिन्ह भारत की प्रतिमा पर लहराना होगा।
भारत की छवि बदलनी होगी,
एहि है श्रद्धांजलि का जल जो हमें
अपने पूर्वजों को अर्पित कर इति को प्रज्वलित करना होगा।
पूर्णतः की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी,
पर हमें मनरूपी अश्व की लगाम
अपने हाथों से थामनी होगी,
तभी हम खुले आसमान में उड़ान भर पाएंगे।