सुख के दो पल – Delhi Poetry Slam

सुख के दो पल

By Sangeeta Jain 

शहरों में है धूम बड़ी, पर अंतर्मन वीरान पड़ा।
नज़र उठाकर देखा तो, बेबस हर इंसान खड़ा।।

न रिश्तों में वो बात रही, न बातों में कुछ खास रहा।
एक छत के नीचे रहकर भी, अपनों के न पास रहा।।

एक दूजे का साथ किसी को अब न उतना भाता है।
हर मानव के अन्दर बस अब मैं- ही -मैं लहराता है।।

यूँ तो जा पहुँचा चाँद-मार्स पर, अपनो तक न पहुँच सका।
अपनी ही चाहत को, अपनो से ही न बांट सका।।

समय नहीं अब इतना भी कि अपनी भी कुछ सुध ले ले।
व्यस्त समय के इस जीवन से, किसी को सुख के दो पल दे दे।।

आया कैसा दौर कि जिसने हर रिश्ते को रौंदा है।
आये सुकून कैसे जीवन में, दिल का हर कोना खोला है।।

भाग रहा है इधर-उधर पाने को मृग कस्तूरी(खुशी)।
नहीं जानता उससे(खुशी), न है किंचित मात्र भी दूरी।।


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