By Sangeeta Bimal

हे ईश्वर,
क्या तुम पुरुष हो?
कि,
अचानक
सब ठीक करते -करते
अनमने हो जाते हो
तुम।
कि,
अचानक साथ चलते-चलते
बहुत आगे हो जाते हो
तुम।
कि,
दुनिया से अलग
कुछ और ही
योजना बनाते हो
तुम।
कि,
तुम्हें भी पसंद आते हैं
झुके हुए सिर
और
जुड़े हुए हाथ।
कि,
तुम थकते नहीं
परीक्षाऐं लेते हुए।
कठिन और कठिनतर
परीक्षा।
कि,
तुम्हें भी पसंद है
'दाता' होने का भाव।
'स्वामी' होने का चाव।
हे ईश्वर,
तुम क्या सच में
एक पुरुष हो?
जीवन से भरी तेरी यादें
मजबूर करें जीने के लिए
बहुत खूब लिखा हैं आपने
मन को छू लिया हैं
Really very true about a dominant Nature of men . very nice mam