By Sandhya Singh
तुम न होते तो ज़िंदगी कितनी अधूरी होती।
वो ख़ुशियाँ न होतीं, वो पल न होते,
वो दिन न होते, स्कूल की यादें न होतीं,
बचपन का वो प्यारा सा प्यार न होता,
वो लड़ना-झगड़ना भी न होता,
वो सुनाकर तुम्हें खुद रोना भी न होता।
वो बर्थडे पार्टियों में हँसना-गाना न होता,
वो पड़ोसन को कुछ कह कर चिढ़ाना न होता,
तुम न होते तो मेरे लिए दूसरों से कौन लड़ता,
तुम न होते तो रास्तों में गालियाँ किसे देता।
तुम न होते तो हम 'हम' कैसे होते,
दोस्तों की वो महफ़िल, वो लड़कपन न होता।
तुम न होते तो होली में रंग कहाँ से आता,
वो न्यू ईयर के कार्डों पर नाम किसका होता,
वो प्यार, वो ख़ुशी, वो हर पल की याद —
तुम न होते तो आज भी हम "अवसाद" में होते।
कुछ न होते हुए भी हम दिल से अमीर कैसे होते,
तुम न होते तो ज़िंदगी पतझड़ बनकर रह जाती,
तुम न होते तो बहार कौन लाता,
तुम न होते तो मेरे लिए ये बेशुमार प्यार कौन लाता।
हाँ, तुम सब मेरे प्यारे दोस्तों...
तुम न होते तो मैं भी न होता,
किसके कंधे पर सिर रखकर रोता,
किसे गले लगाकर अपना दर्द कहता,
किसके दो चांटे खाकर भी फिर हँसकर गले लग जाता।
तुम न होते... तो किसके लिए जीता।
परिवार नहीं हो, पर परिवार से कम भी नहीं।
आज भी तुम मेरी साँसों में बसे हो,
मेरी हर घड़ी, हर पल में हँसते हो।
दूर-दूर हो गए हैं सब, तो क्या हुआ,
आज भी तुम सब मेरे जिगर में बसते हो…