सभ्यता – Delhi Poetry Slam

सभ्यता

By SANDEEP KAUSHAL

 

 

जब भी हमें मौका मिला
असली चेहरा अपना सामने लाया ।
कोरोना ने जब कहर मचाया
तो मैंने भी पैसा खूब कमाया ।

वे मर रहे थे ,मजबूर थे
पर मेरी पहुँच से कहाँ दूर थे ।

दवाइयाँ इंजेक्शन सब कुछ मैंने उपलब्ध कराया
फिर क्या हुआ !जो थोड़ा पैसा कमाया ।

अगर कोई न हो क़ायदा ,न हो कोई कानून
जगह ऐसी मिल जाए ,जहाँ कोई जानता न हो
तो मैं आज भी वही जानवर, वही हैवान हूँ 
बस मैं तो कहने को ही इंसान हूँ ।


न शादी का बंधन ,न बच्चों की ज़िम्मेदारी
डोलता रहता इधर-उधर
मुझे कहाँ करनी थी कोई फ़िकर
न होता मुझे बेइज्जती का डर
राक्षस होता सबसे निडर

ताकत से सब कुछ हासिल करता
मुझे क्या पड़ी फिर चाहे कोई जीता या मरता

हाँ मैं आज का सभ्य इंसान हूँ ।
क्या हूँ ? 
सभ्य इंसान !!


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