By Sanchita Srivastava
आज अपने दिल की किताब को खोला
और कुछ पन्नों को टटोला...
कुछ बेहिसाब मुस्कुरा रहे थे,
और कुछ आँसुओं से भीगी हुई फैली स्याही से अपनी दास्ताँ सुना रहे...
आगे पलटते-पलटते पन्नों को
नज़र पड़ी कुछ कोरे पन्नों पर,
जो मानो घूर कर मुझसे पूछ रहे हों..
"क्यों छोड़ दिया हमें यूँ?"
आँखें मूंद कर ढूँढ रही थी इनके कोरे होने की वजह,
तभी मन से आवाज आई..
"अपने टूटे हुए सपनों और अधूरी ख्वाहिशों की क्यूँ दे डाली तूने इन्हें सज़ा?"
आज फिर एहसास उभरे हैं,
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
कैद परिंदों की तरह फिर उड़ने को बेताब हैं...
आज फिर कुछ नया लिखना चाहती हूँ,
ज़िंदगी की किताब को तेरे रंग से भरना चाहती हूँ...
इस दुनिया से तेरे संग मिलकर फिर से लड़ना चाहती हूँ मैं,
उन कोरे पन्नों को फिर से भरना चाहती हूँ मैं...
