धुंधली आँखों – Delhi Poetry Slam

धुंधली आँखों

By Sakshi Bhardwaj 

नयी आँखों ने 
खाए हैं धोखे लाखों से, 
काफी साफ़ दिखती है दुनियाँ
धुंधली आँखों से।
बेबसी की तपन
सिकुड़े हाथ ,माथे पर शिकन
ये राज़, काँपती आवाज़
मन की संदूक में लिए, 
जीवन का सार
उधेड़ता बुनता धड़कनों को
जाने कितनी बार
एक चेहरा मुझमें, 
झलका सा लगता है
ये पल मुझे, 
अभी कल का सा लगता है
ये बहता वक्त 
कहाँ सुनाई दिया
एक दिन,
आइने में दिखाई दिया


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