Saguna Wadhwa – Delhi Poetry Slam

Wo Mai hi to tha

By Saguna Wadhwa

फिर सुबह हुई
फिर ये दिल ख्वाहिशों की दहलीज़ पर जा कर खड़ा हो गया।
चाहता क्या था जानता नहीं था पर चाहिए था इससे कुछ।
क्या वो नई कोई खुशी तलाश रहा था या फिर जाने-पहचाने उस सुकून को ढूंढ़ रहा था।
क्या कोई वजह थी कल मायूस सा सो जाने की या बस यूँ ही मन को कुछ बहला नहीं पा रहा था।
ये बड़ा ही कम ज़र्फ हो चला है दिल, नाप-तौल के मुस्कुराता है।
अरे मुस्कुराने की कोई वजह होनी चाहिए, ये कब सीख लिया?
न जाने कब इन ज़िंदगी के तानों-बानों में खुद को खो दिया?
मैं तो बस अपने लिए काफी ही हुआ करता था ना?
ये कोई खुश रखने वाला चाहिए, ये किसने कह दिया?

आँखों को हल्के से छूती सुबह की पहली किरण
थके तनहा से चेहरे पर पड़ती बारिश की ठंडी बूँदें।
बालों में घुलती मीठी सी शाम की हवा
रात को प्यार से सुलाती रात की रानी की खुशबू।
इन सब को तो अब मैं नज़रअंदाज़ कर देता हूँ।
ये क्या, ऐसी बहुत सी छोटी-छोटी प्यारी चीज़ें जो मुझे कभी मुरझाने ही नहीं देती थीं, उन्हें तो मैं अब सींचना ही भूल गया हूँ।

बस चलते-चलते आगे बढ़ता गया
जो राह में आया उसे पार करने की ही कोशिशों में ऐसा गुम सा गया..
साथ कौन था?
पीछे किसे छोड़ आया?
सामने से कौन बाहें फैलाए खड़ा था?
आसमान में पंछी रहे या सब उड़ गए?
फूलों ने खिलना छोड़ तो नहीं दिया कहीं?
मुझे कुछ ख़बर न रही।

और अब जब थक कर थोड़ी रफ़्तार कम की
थोड़ा रुका
थोड़ी दिल की सुनी
तो न जाने क्यों लगा कि शायद दिल वही पहले वाली खुशी ही तलाश रहा था।
पर मैं तो बढ़ गया था ना
मैं तो आगे आ गया था
नई सी एक दुनिया बना ली थी ना मैंने
कितनी मंज़िलें पार कर ली थीं
क्या हुआ
कितना कुछ तो हासिल कर लिया था
अब ये कौन सी खलिश मुझे रही है
ऐसा क्या भूल आया था
सब कुछ तो मिल गया था जो चाहा, जो माँगा, जो सोचा
पर जब पलट कर देखा तो दूर मुस्कुराता कोई नज़र आया
जानी-पहचानी सी वो मुस्कान लिए मुझको कौन देख रहा था
जब समझ आया तो एक पल के लिए सब थम गया


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