By Saakshi Joshi
किसी के सामने नहीं हंसी।
ना ब्लैक एंड वाइट फोटोज़ में,
ना कोडेक मोमेंट्स में,
ना बतख जैसा मुँह बनाती बेटी के साथ सेल्फीज़ में
कहीं भी नहीं मिली, उसकी हंसी।
कम से कम मैं तो ना मानूं
दाँतों को कैद में रख दबे से होंठों को
गाल पिचकाये सांस रोके कैमरे में घूरती आँखों को
कमर गुदगुदाने पर होठों की खिंचती सोती लकीर को
हंसी।
ढंग से क्यों नहीं हंसती तुम? पूछा मैंने, हाथों में उसकी पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो लिए।
तो छौंका लगाया उसने - क्या हुआ? अब माँ की हंसी से आफ़त है?
मैंने फ़ोटो सामने रख कहा - ड्रामा क्वीन! ये कब की है?
वो प्यार से फ़ोटो को उठा कर बोली - रिश्ते के लिए ली थी।
मतलब ना शादी हुई थी, ना मेरी माँ बनी थी, ना अपना शहर छोड़ा था, ना नाम बदला था, ना दोस्त खोये थे, ना रोज़ सुबह ४ बजे उठ १० लोगों का खाना बना रही थी अपनी ड्यूटी पर जाने से पहले...तो इस फ़ोटो में क्यों ऐसे सैड है ?
वो लड़की , जो अब मेरी माँ है, रुक कर बोली - क्योंकि मेरी हंसी बहुत खराब थी।
सेड हु?
सब। मेरे दांत बड़े और चौड़े और दिखने में भद्दे -
मेरे भी तो ऐसे हैं। मेरी हंसी पर तो तुम मरती हो।
छौंके की जगह चुप्पी ने ले ली
तो मौके पर छौंका मैंने लगाया - क्या मिला बनकर मीना कुमारी?
तेरा पापा।
और तब यहाँ मिली
पेट से निकल,
ताली में गूंज,
आँखों का पानी बन,
अपने समाज की पोल खोलती,
मोना लिसा सी अद्भुत
उस लड़की की हंसी।
यह कविता वास्तव में हृदय को छू लेने वाली है। रचनाकार ने भावनाओं को इतने सुंदर और सहज शब्दों में पिरोया है कि पाठक उसकी हर पंक्ति में खो जाता है। शब्दों की सरलता के बावजूद, उसमें गहराई और अर्थ की भरमार है।
कविता में जो भावनात्मक स्पर्श है, वह पाठक को भीतर तक प्रभावित करता है। साथ ही, प्रकृति, प्रेम, समाज या आत्मचिंतन पर आधारित भाव—जिस किसी विषय को भी उठाया गया है—उसे अत्यंत संवेदनशीलता और सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया गया है।
बहुत ही Sehaj, सरल और सटीक तरीके से नारी मन की antervyatha और कथा की अभिव्यक्ति है यह कविता.