आज का कलयुग – Delhi Poetry Slam

आज का कलयुग

By Roshni Mahor

आज एक मुलाकात कराती हू,
कलयुग से आपकी बात करवाती हुं।।
क्रोध, ईर्ष्या और बैर यही इसकी परिभाषा है,
प्रेम, इंसानियत मर गई धन ही इसकी अभिलाषा है।।
यहां धर्म का अपमान करते हैं,
फिर धर्म के लिए ही लड़ते है।।
ये कैसा प्रेम दिखाते हैं,
एक दूसरे को मारकर अपना प्रेम जताते है।
और कितनी श्रद्धा के टुकड़े होना अभी बाकी है,
इस युग ने कैसा नाम कर दिया,
प्रेम को भी बदनाम कर दिया।।
सतयुग के राम में मर्यादा थी रावण भी ज्ञानी था,
द्वापर में महाभारत हुई फिर भी परिवार में प्यार था।
कलयुग ही एक ऐसा आया, ना प्रेम, ना ही सम्मान है,
धन के लिए ईमान बिक गया,हर कोई बेईमान है।।
कलयुग से ज़रा बचकर चलो, ना संस्कार छोड़ो तुम,
थामो हाथ प्रेम का, इंसानियत ना भूलो तुम ।
नई पीढ़ी तुम नया भविष्य, देश से तुम प्यार करो ।
अपने कामों से तुम जग में रोशन नाम करो ।।


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