आग और राख – Delhi Poetry Slam

आग और राख

By Rohitkumar Patel

ये जो धुआँ कहीं पर उठता है,
कुछ 'राज़' की बात बताता है,
कि "आग" कहीं तो जल रही,
सब "राख" कहीं ना हो जाए!!

बंदूक से "गोली" चलती है,
सीने को "छलनी" करती है!
गोली लोहे से बनती है,
लोहा अग्नि में तपता है,
ये "आग" कहीं तो जल रही,
सब "राख" कहीं ना हो जाए!!

ये जो धुआँ कहीं पर उठता है,
कुछ 'राज़' की बात बताता है,
कि "आग" कहीं तो जल रही,
सब "राख" कहीं ना हो जाए!!

बच्चा "भूख" से रोता है,
रोटी के लिए वो "तड़पता" है,
रोटी आटे से बनती है,
आटा अग्नि में पकता है,
ये "आग" कहीं तो जल जाए,
सब "राख" कहीं ना हो जाए!!

ये जो धुआँ कहीं पर उठता है,
कुछ 'राज़' की बात बताता है,
कि "आग" कहीं तो जल रही,
सब "राख" कहीं ना हो जाए!!

नफरत ना करो, बस प्रेम करो,
शिकवे, रंज़िश, सब माफ़ करो,
ये भेद-भाव एक "भरम" तो है,
ये "भरम" नरक की "आग" तो है,
ये "आग" कहीं तो जल रही,
सब "राख" कहीं ना हो जाए!!


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