By Rohit Tulsiyan
जब देवता ही थे तुम,
तो क्यों जरूरी था वादे से फिरना?
क्यों बदला वेश और क्यूं किया छल
अमृत वितरण में?
वह दानव थे जिन्होंने पिया अमृत,
और फिर देवताओं को मार कर
दानवों ने खुद को देवता घोषित किया।
आज कहीं कोई देवता दूर-दूर तक नहीं है,
पर दानव हैं चारों ओर
चोर–लुटेरे हैं, रिश्वतखोर हैं,
हत्यारे हैं, बलात्कारी हैं, दंगाई हैं।
मिसाइल और बमों की शक्ति वाले
नरसंहार करने वाले नेता हैं
दानव ही तो आज तक जीवित हैं।
और बचा हूँ मैं तब से अब तक
जीवन समुद्र के मंथन से जो निकला
वो विष पीने वाला मैं शंकर हूं।
मुझे भोला बता कर कुछ भी न दिया,
विष पी कर भी मैं अंत तक जीवित रहूंगा,
और हर दिन अपना जीवन मथता रहूंगा।
मुझे मिलेगा केवल विष
मेरा पारश्रमिक।
Bahot badhiya sir ji 👍
Very nice 👍👍
Kya baat hai ji!!! Baat toh sahi kaha hai aapne.
समुद्र मंथन का भी बहुत सुंदर मंथन आपने किया है साधुवाद आपको। आगे और भी लिखते रहे।