By Rohit Khandelwal
राह मे क्यों है अंधेरा छलका
दिन दिन का था खेला
दिन मे ही सिमटा...
राही चला, राह से ना भटका
दिन दिन का था खेला
दिन मे ही सिमटा...
किसकी थी वो जंजीर,
जो पकड़ गयी किनारा
खींच लिया आसमान हमारा,
खींच लिया जहान तुम्हारा
राही उड़ा, राह से ना भटका
दिन दिन का था खेला
दिन मे ही सिमटा...
क्या थी वो उछाल,
जिसको ना मिला सहारा,
ले गयी आसमान हमारा,
छीन लिया जहान तुम्हारा
कहा थे हम चले...
कहा थे हम चले...
क्यों थे हम चले...
क्यों थे हम चले...
की...
राह मे है अंधेरा छलका
दिन दिन का था खेला
दिन मे ही सिमटा...
राह मे दोड़ता, राह का था पक्का
कैसी थी वो दोड़, भूल गया राह,
की ना दोड़ पाया, जहान हमारा,
पीछे रह गया आसमान हमारा,
और छूट गया जहान तुम्हारा
अब सिर्फ...
राह मे है अंधेरा छलका
दिन दिन का था खेला
दिन मे ही सिमटा...