हम भी ख्व़ाब लिखते। – Delhi Poetry Slam

हम भी ख्व़ाब लिखते।

By Rizwan Khan

सुकून-ए-दिल के लिए
हम्द व नात लिखते।
अगर सीखते कलम चलाना
तो हम भी ख्व़ाब लिखते।

एहसास बयान करते,
अशआर चार लिखते।
तसव्वुर उनका होता
और ग़ज़ल बेशुमार लिखते।
अधूरे–पूरे दिल के
अनकहे जज़्बात लिखते।
अगर सीखते कलम चलाना
तो हम भी ख्व़ाब लिखते।

दिल में है वह,
ज़ेहन में ख्याल उनका।
इश्क़ के सारे
रूमानी अंदाज़ लिखते।

मरीज़-ए-इश्क़ हैं हम
और शिफ़ा-ए-मर्ज़ वह।
उनकी एक झलक के
कितने हैं बेताब लिखते।
अगर सीखते कलम चलाना
तो हम भी ख्व़ाब लिखते।

पैग़ाम के हमारे वह
एक अरसे से मुन्तज़िर हैं।
इज़हार में ताख़ीर का
हर एक राज़ लिखते।
अगर सीखते कलम चलाना
तो हम भी ख्व़ाब लिखते।
अगर सीखते कलम चलाना
तो हम भी ख्व़ाब लिखते।


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