By Richa Srivastava

लौ मेरे रज दीप की,
द्योतक है
अनवरत प्रस्फुटित ऊर्जा ,
सतत अध्यनरत प्राण एवं
प्रतीति भावना की ।
लौ तेरी प्रीति की ,
अति सम्मोहक ,अति द्युतिमान,
आमंत्रित करती है मुझे
हो जाने को ,संदीप सी ।
तेरी लौ से लौ लगाई है ,
मेरी लौ कुछ बढ़ आई है,
यह तेरी लौ की परछाईं है, अंतस से व्योम तक विस्तार पाने ,
उमड़ाई है ।
बढ़ रही है प्रतिपल मेरी बाती,
चुक रहा है प्राण तैल निमिष भांति,
रक्त रंजक मेरी लौ को,
नीलाभ श्वेत हो जाने दे ,
मेरी लौ को तेरी लौ तक आने दे,
एकाकार हो जाने दे।