लौ – Delhi Poetry Slam

लौ

By Richa Srivastava

 लौ मेरे रज दीप की,
 द्योतक है
 अनवरत प्रस्फुटित ऊर्जा ,
 सतत अध्यनरत प्राण एवं
  प्रतीति भावना की ।
 
 लौ तेरी प्रीति की ,
 अति सम्मोहक ,अति द्युतिमान, 
 आमंत्रित करती है मुझे 
 हो जाने को ,संदीप सी ।
 
 तेरी लौ से लौ लगाई है ,
 मेरी लौ कुछ बढ़ आई है,
  यह तेरी लौ की परछाईं है, अंतस से व्योम तक विस्तार पाने ,
 उमड़ाई है ।
 
 बढ़ रही है प्रतिपल मेरी बाती,
  चुक रहा है प्राण तैल निमिष भांति,
  रक्त रंजक मेरी लौ को,
  नीलाभ श्वेत हो जाने दे ,
 मेरी लौ को तेरी लौ तक आने दे,
  एकाकार हो जाने दे।


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