By Rekha Rani

दिल और रूह की गुफ़्तगू
(एक गहरी और संवेदनशील सोच)
दिल ने रूह से पूछी एक गहरी बात,
लड़कियों के मकाँ होते हैं कहाँ?
जहाँ वो रहती है जन्म से जवानी तक,
जहाँ रही शादी से रवानी तक?
पति के साथ भी है वो घरनी,
गर रह गई अकेली — पति-हीन जीवन से डरती।
क्यों हर नज़र चुभती-सी लगती हैं?
क्यों हर जगह वो पराई-सी दिखती है?
अहिल्या के लिए कोई राम आज आएंगे?
बताओ, कलियुग में कैसे रामराज्य लाएंगे?
गर वह बेटियों की माँ है,
लोग भूल जाना चाहते हैं
उसका नाम —
और बेटियों का अस्तित्व तमाम।
डरते हैं कहीं न माँग बैठे वो अपना जायज़ हक़,
कहते हैं, लड़कियाँ हों — न देख ऐसे सपने।
इसलिए वो खुद ही है लड़ती-झगड़ती,
अपने अस्तित्व, अपनी पहचान, अपने अधिकार के लिए आगे बढ़ती।
अंधकार से वह हार नहीं मानती,
किताबें नहीं — ज़िंदगी को ही गुरु जानती।
फीनिक्स की तरह राख से बार-बार है निकलती।
चोटों से टूटकर फिर खुद को खूबसूरती से है गढ़ती।
आँसू और दर्द से रच लिए उसने ज़िंदगी के गीत और कविता।
कहती है कुदरत — “तू नहीं अकेली, मत कर चिंता।
गूँज रहीं ब्रह्मांड और उसके पालनहार तक शब्दों के बोझ से मुक्त तेरी मौन मिन्नतें।
हम हैं साथ तेरे हर आँसू और दर्द में,
साबित न कर तू कुछ भी इस गर्द में।
ज़िंदगी है छोटी — न ज़ाया कर,
ज़माने की छोटी हरकतों और बातों पर।
कौन तेरा अधिकार तुझसे छीन पाएगा?
जो तेरा है — वो तेरे पास ही आएगा।
कहा रूह ने दिल से, जहां मिले सुकूँ
उसके रूह को वही है उसका मकाँ।