ऐसा संसार चाहिए – Delhi Poetry Slam

ऐसा संसार चाहिए

By Rekha Chamoli

नफ़रतों से इतर, इंसानियत का भाव चाहिए
प्रेम, भाव, सौहार्द कामना, ऐसा संसार चाहिए।
उड़ान हो हर किसी की, इस ज़मीं से आसमां तक की,
पर अच्छाई, सच्चाई के रिश्ते—हो ख्वाब सबका पूरा,
ऐसा ख्वाबों का कारवां चाहिए
नफ़रतों से इतर...

हो हर धर्म का सम्मान, पाक हो हर इंसान,
चाहे हो मंदिर, मस्जिद या चर्च, गुरुद्वारा—
हो ईश्वर, अल्लाह या हो ईशु का सहारा,
हर किसी का किसी से हो श्रद्धा का वास्ता—
ऐसा महकता एक गुलिस्तां चाहिए
नफ़रतों से इतर...

न हो इंसानों के भीतर अहम भावना,
हृदय हो पवित्र सबके, सबसे दिलों में पवित्र भावना।
हो नारी का सम्मान, नर समान उसके अधिकार,
आसमान उड़ने का दोनों का सपना हो साकार—
ऐसा सभी के भीतर, एहसास चाहिए
नफ़रतों से इतर इंसानियत...

दुखी न हो कोई भी जहां में,
न हो कोई दर्द किसी के भी जीवन में।
न हो अमीरी-गरीबी की रेखाएं,
सर पे सबके ईश्वर की दुआएं।
न हो कोई बनावट की हंसी,
खिलखिलाती हर किसी की ज़िंदगी हो—
ऐसा खूबसूरत एक जहां चाहिए
नफ़रतों से इतर इंसानियत...

संसार में युद्धों की न हो विभीषिकाएं,
न हो कराहते मन, और न हो सुलगते ज़ख़्मों से
भरा किसी का भी जीवन।
खुश हर जीव, हर डाल, हर पत्ता,
रामराज्य की कल्पना का वास्तविक सरोकार हो—
ऐसा खुशियों भरा, हर किसी का आशियाना चाहिए
नफ़रतों से इतर इंसानियत...

प्रेम, भाव, सौहार्द, कामना—ऐसा संसार चाहिए।
हो चाहे खुशियां या दर्द भरे रास्ते,
हाथों में हाथ थामें, आशाओं के गीत गाए—
सितारों भरा अनोखा एक जहां हम बनाएँ।
नफ़रतों से इतर इंसानियत का भाव चाहिए,
प्रेम, भाव, सौहार्द, कामना—ऐसा संसार चाहिए।


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