By Ravindra Purohit
काश
काश ये मेरे जिम्मे,
ना होता!
तुझे तोड़ दूं
या बना दो फिर वही,
ये मेरे हिस्से
ना होता!
कहते हैं,
तक़दीर के खेल
निराले होते हैं!
कश कम से कम
तेरी लिखना मेरे हक में,
ना होता!
बँते बिगडते
इस जहां में ख्वाब तो, खूब से देखे हैं!
पार काश,
मुझसे शुरू और मुझपर खत्मह
तेरा ये किस्सा,
ना होता!
काश ये मेरे जिम्मे
ना होता...