By Ravi Shankar Parashar

तुम मेरी खातिर ही बनी हो,
मै लोहा तुम पारसमणि हो।
तुम छु लो तो जी उठता हूँ,
मै लक्ष्मण तुम संजीवनी हो।
तुम संग है जीवन गंगा सा,
तुम बिन जैसे वैतरणी हो।
तुम साथ हो तो सब आसां है,
चाहे साढ़े-साती पे शनि हो।
मेरी काली सूनी रातों में,
तुम शरद पूर्ण की चांदनी हो।
नवरसों में तुम रस करुणा का,
तुम स्वरों में कोमल की ध्वनि हो।
तू हंस कर के जिसको देखे,
वो आजीवन तेरा ऋणी हो।
वो आकर के देखें तुझको,
पलकें न जिन्हें झपकनी हो।
तुम पांच तत्वों का योग नहीं,
तुम किसी दिव्यता में सनी हो।
तेरे आगे हीरे मोती क्या,
तुझको पाकर कुबेर धनि हो।
तुम एकमात्र मेरी पूँजी,
तुम ही मेरी आमदनी हो।
तुम मेरा प्रेरणा स्तोत्र प्रिये,
तुम मुझमे कला की जननी हो।
तुम ही मेरी मोनालिसा हो,
तुम मेरी बीथोवेन सिम्फनी हो।
जीवन उत्सव सा लगता है,
जबसे तुम जीवन संगिनी हो।
यह किसी साधना का फल है,
की तुम मेरी अर्धांगिनी हो।