By Rashmi Shahi Sharma
वो इक्कीसवीं सदी की लड़की,
है चालीस पार भी चौदह की,
चौदह से चालीस होने का,
इक लंबा सफ़र तय कर गई...
उसके माथे की बिंदिया छोटी से बड़ी होती रही,
ठीक उसके हर छोटे-बड़े फैसलों की तरह...
कानों की बालियाँ, झुमके, वो वैसे ही पहनती रही,
ठीक तानों को कानों के आर-पार करती आई जिस तरह...
साड़ी बाँधने से सँभालने तक का सफ़र तय करती आई है,
ठीक हर उम्र में तह किए कुछ अनछुए अनाम रिश्तों की तरह।
काले घने लटों में कुछ वरक चाँदनी सी उतार आई है,
ठीक उसकी संजीदगी, अल्हड़ बेफिक्री की तरह...
माथे पर शिकन अब भी नहीं,
बस चंद लकीरें उभर आई हैं,
ठीक उसके सिमट आए जाने कितने जज़्बातों की तरह...
कदम उसके अब डगमगाते नहीं,
चाल में एक अजीब सी काया है,
कंधा अब थोड़ा ज़्यादा तन गया है उसका,
आँखों में ग़ज़ब की माया है...
हाँ, कभी-कभी घुटनों में दर्द भी होता है,
करीब में हल्का धुंधलका सा छाया है,
पर पारखी, अनुभवी आँखों में अब
दूर का साफ़ नज़र आया है...
ये इक्कीसवीं सदी की लड़की,
रहती है चालीस पार भी चौदह की...
जानती है खुद को तरजीह देना,
खुद से भी मोहब्बत निभा लेना...
ग़म में ग़मगीन तो ख़ुशी में चहकना,
नहीं दबाती अपने जज़्बात,
सीख लेती है अब बयां करना...
इसलिए ये इक्कीसवीं सदी की लड़की
महसूस करती है चालीस पार भी चौदह की...
So relatable,beautifully written .You are a gifted poetess Rashmi
Lovely …. You are gifted…. God Bless u…
Bahut Gehrai he….Gazab
Awesome poetry Rashmi 👏🏻👏🏻… So heartfelt and relatable. Each and every line expresses the true beauty and grace of " the ikkisvi sadi ki ladki". Kuddus to you.
Rashmi it is such a heart touching piece! Loved it
Beautifully expressed each and every word. Loved it😘
Beautifully expressed each and every word. Loved it😘
Beautifully expressed 👏👏👏
Simply beautiful each and every word is so heartfelt and deep. Just loved it.
Beautiful poem and relevant to all the millennial girls.
Superb…keep writing
Superb…keep writing
Waah rashmi waah
Lovely poem….