By Rashmi Sahai
कृषक का बच्चा,
नासमझ, अक्ल का कच्चा,
पहनने को वस्त्र नहीं,
गरीब, अमीर की समझ नहीं,
जात-पांत से परे,
अर्धनग्न, टायर दौड़ाता था,
और खुशी से खिलखिलाता था।
तीन बहनों का अकेला भाई था,
मां-बाप की उच्च अभिलाषाओं का बोझ लिए
बड़ा होता जाता था।
इकलौते पुत्र के लिए बड़े अरमान,
महंगे कॉन्वेंट में एडमिशन,
पर हमेशा चुप रहा, उनकी आकांक्षाओं को जान।
बता ही नहीं सका, क्लास में वो अछूत था,
हास्य का पात्र, फ़ीस भरकर भी,
गंवई बच्चा था।
गहरी सांस लेता था वो बच्चा,
समझ का नहीं था कच्चा,
पढ़ता गया, बढ़ता गया,
निरंतर उपेक्षाओं के बीच, जोत सा जल रहा था।
आज उच्च पदस्थ अधिकारी था,
कड़वाहट झेल कर, देख कर ही बड़ा हुआ था।
आज उसका समय था, पर नहीं ——
यहां भी वो अंतर बरकरार था,
उसके आते ही पसर आई चुप्पी का ही हकदार था।
ख़ुशी सिर्फ़ हासिल की थी,
पर अब भी था कड़वाहट का शिकार,
जीवन भर उपेक्षा ही बटोरी थी,
अब उसके समक्ष आने वाला
हर कोई झल्लाहट का शिकार था।
कड़वाहट बटोरी थी, ख़ुशी कहां से लाता?
जो था अंतर में, वही तो परोस आता था।