By Rashmi Chhabariya
शरद पूर्णिमा की रात्रि आई,
रास रचने कृष्ण संग राधा आई
वंशीवट गुंज उठा गोपियों के नाद से,
जहां कृष्ण बांसुरी बजाए पवित्र प्रेम से,
आरंभ किया महारास राधा संग,
पर कृष्ण मिले सभी गोपी के संग।
महारास की गुंज छाई त्रिलोक में,
देवी देवता आए एक अलग अंदाज़ में।
रास के मधुर स्वर पहुंचे शिव के कानो में,
ध्यान से मुक्त हुए शिव अनोखी मुस्कान में।
मन हुआ शिव का वंशीवट जाने को,
राधा कृष्ण संग रास रचने को।
चल पड़े है कैलाश से शिव धनुष लेकर,
पर क्या जा पाएंगे अपना ये रूप लेकर?
द्वारपालों ने रोका महादेव को पूछकर...
"कौन हो तुम भाई, कहकर।
बोले शिव, हमें रास देखना है राधा कृष्ण का,
जाने दे हमे अंदर शीघ्रकर।
लाख बोलने पर द्वारपाल न माने शिव की,
शिव रूष्ट होके बोले पार्वती को,
हे देवी ये क्या संकट है रास में जाने को,
भगवान होके जा नहीं सकता द्वारपालों के रोकने पर।
ऐसे कैसे महादेव,
आपको अपना रूप बदलना होगा अंदर जाने को,
यमुना पर पहुंचके शिव बिनती करे
हे देवी, मुझे गोपी वस्त्र आभूषण का दान करे।
बदलके रूप गोपेश्वर पहुंचे वंशीवट पर,
कृष्ण खूब हंसे अपने आराध्य पर।
मिले गोपी के रूप में राधा कृष्ण से,
महारास रचायों संग राधा कृष्ण से।
खिल उठा सारा संसार महारास देखकर,
देवी पार्वती भी झूम उठी शिव को देखकर।