By Rashmi Agrawal
ऐसा नहीं कि मैं खुश नहीं, फिर भी पता नहीं क्यूँ रोज़ अपनी पहचान ढूँढती हूँ ।
मैं खुश हूँ अपनी दुनियादारी में, फिर भी पता नहीं क्यूँ अपना एक मुकाम ढूँढती हूँ ।
माना उम्र के इस पड़ाव पर मैं उतनी सक्षम नहीं, फिर भी पता नहीं क्यूँ खोये हुए सपनों के निशान ढूँढती हूँ।
मैं सफल ग्रहणी हूँ, फिर भी पता नहीं क्यूँ रोज़ सफलता का नया आयाम ढूंढती हूँ।
अस्तित्व कि खोज मै अपने हौंसले की उड़ान ढूँढती हूँ ।
मैं दिल की सुनती हूँ, फिर भी पता नहीं क्यूँ दिमाग को हावी कर रोज़ एक नया ताना बाना उधेड़ती बुनती हूँ ।
ऐसा नहीं की मुझे पता नहीं की न तो खुशियों का कोई ठिकाना है और न ही सफलता का कोई पैमाना है, फिर भी पता नहीं आखिर क्यूँ और कैसी अपनी पहचान ढूँढती हूँ।
मैं खुश हूँ, मैं खुश हूँ,फिर भी पता नहीं क्यूँ रोज़ अपनी पहचान ढूँढती हूँ ।