कांपते शब्द – Delhi Poetry Slam

कांपते शब्द

By Ranjana Singh

22 अप्रैल 25 की  ये दर्दनाक कहानी,
कांपते होठों से सुनाती हूं मैं जुबानी।
अमन शांति के दुश्मन देश से आए दरिंदे,
फौजी भेष में थे,पहचान सके न हम बंदे।
आतंकवादी भेड़ियों ने पूछा धर्म निहत्थों से,
दहला दिया पहलगाम की धरती को कुकृत्यों से।
बेफिक्री से घूम रहे थे कितने मासूम परिवार वहां,
दहशतगर्दों ने बेरहमी से किया घोर नरसंहार वहां।
नामर्दों ने हिंदू धर्म के मर्दों पर बंदूक तान दी,
बेकसूरों की उन दानवों ने बेरहमी से जान ली।
पति किसी ने, किसी ने बेटा ,बाप किसी ने खोया है,
देख कर इन सबका दुःख हर इंसा दिल रोया है।
कितनी बहनों ने अपने पतियों का रक्त वहां बहते देखा,
ये अपार दुःख उनके अपनों को सहते देखा।
सुन कर उनकी करुण व्यथा आंखों से आंसू बहते हैं,
ले के रहेंगे बदला हम हर हिंदुस्तानी कहते हैं।
सिंदूर मिटाने वालोंको हम ऐसा सबक सिखाएंगे,
हिंदुस्तानी फौज की नजरों से अब वो बच न पाएंगे।
आतंकवाद को पाले जो हमें उसको सबक सिखाना है,
ये प्रण किया है भारत ने दुश्मन को हमें मिटाना है।
आपरेशन सिंदूर देख कर  अब दुश्मन घबराया है,
क्या होती है सिंदूर की कीमत,अब समझ वो पाया है।
हर इक भारतवासी ने अपने मन में ये ठानी है,
दो चार नहीं बस  बहुत हुआ,अब हस्ती हमें मिटानी है।।


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