By Priyanka Sirohi
अपने रीति-रिवाज और समाज की लोगों को बहुत कद्र है-
इस कदर कि जिस लड़की को वो रानी बिटिया कहते थे, उसके आँसू, ख़ामोशी और चीख़ तक न देख पाए।
छोड़ आए एक अजनबी से परिवार में यह कहकर — सम्भाल अब अपना घर, जैसे भी सम्भाला जाए।
वही घर जहाँ चंद रूपयों,ना जाने किन-किन बातों के लिए उसे प्रताड़ित किया गया,
वहीं उसके अपनों ने अपनी खोखली आन,बान और शान के लिए उसे छोड़ दिया।
आख़िर ऐसा क्यों ना करे, यह तमगा है ही इतना बड़ा कि उन्होंने सही समय पर अपनी बेटी को ब्याह दिया,
उसे उसके पहले अपने घर से विदा कर, दूसरे अपने घर को सौंप दिया।
जब कभी इनसे, इनकी ज़िम्मेदारियों और उस बिटिया के आँसुओं पर किसी ने सवाल किया,
इन्होंने इस सबको उसका नसीब कहकर टाल दिया।
टाल दिया, फिर टाल दिया, तब तक के लिए टाल दिया गया,
जब तक आखिर में टालने को कुछ शेष ना रह गया।
आखिर कब तक उनकी खुशियों को समाज की चौखट पर यूँ ही भेंट चढ़ाया जाएगा,
कब आएगा वो दिन, जब उन्हें रानी बिटिया नहीं, बस एक बिटिया होने का हक मिल पाएगा ।
काश! उस बिटिया से भी कभी दिल का हाल पूछा जाए , सही समय पर उसका हाथ थामा जाए,
इन सब बेमानी प्रथाओं से उठकर उसे भी सम्मान और स्वतंत्रता से जीने का हक दिया जाए ।
-प्रियंका सिरोही