By Rama Rao
जिस पुनर्जागरण की पवित्र ज्योति में
तुमने अपने दीपक की लों जलाई थी ।
जिस सच्चाई के पथ पर चलकर,
तुमने अपनी जान गवाई थी ।
वो नहीं था महत्वहीन, नहीं गया है व्यर्थ
लाखों लोग उसे समझने में हुए हैं समर्थ
तुम अतुल्यनीय थे, तुम महान थे
तुम अधिकारी थे, सम्मान के ।
तुम आए एक रोशनी बनकर, उत्साह जगाने
जोश भरे हृदय को लेकर , कुछ कर दिखाने
उस काल में जबकि, बस अंधविश्वास के घेरे थे
उस संसार में जबकि, बस अंधेरे के ही घेरे थे ।
चारो ओर झूठ, अत्याचार का प्रभाव था
तर्क, सच्चाई की रोशनी का अभाव था
अंधविश्वास में लोग थे पूरी तरह से अंधे
कोई नहीं था जो ज्ञान के प्रकाश को समझे ।
वो कुछ लोगों की कैसी विचारधारा थी,
जो खुलकर जीने भी नहीं देती थी ,
मन के विचार मन ही मन में उमड़ते थे
जो बाहर आए, तो संघर्ष हो उठते थे ।
पर आज बदल चुका है पूरा संसार ,
बदले हैं लोगों के महत्त्वहीन विचार
आज है स्वागत खुले दिल से नये विचारों का ।
वो संसार जिसकी कभी तुमने कल्पना की थी
वह दुनिया जो आज तक बस तुम्हारे सपनों में ही थी ,
आज की है कल्पना, काश ये परिवर्तन पहले हुआ होता ।
ये सब तुम्हारी सुधारक नजरों के सामने हुआ होता ।
काश! आज तुम यहाँ पर होते
इस बदलते संसार को आँखों से देखते
देखते रूढ़िवाद के टूटते बंधनों को
देखते सच्चाई का साथ देते जनों को ।
काश ! आज तुम होते ! काश ….!
This is my heart’ touching poem !