प्रभु सम मातपिता को हमने छिपछिप रोते देखा है – Delhi Poetry Slam

प्रभु सम मातपिता को हमने छिपछिप रोते देखा है

By Rama Neeldeepti

सुनोसुनो इस जग के लोगों हमने क्या क्या देखा है 
प्रभु सम मात पिता को हमने छिप छिप रोते देखा है।।

जिस प्यारी गोदी ने तुझ को पाला था कितने नाज़ों से,
उस ममता की मूरत को घर से बाहर होते देख है।

वो औरत जिस को तुतला कर तू मेली अम्मा कहता था,
बच्चों के आगे अक्सर ही अब उसे बिलखते देखा है।

दिन रात कमाते थे खट कर बाबा जो बस तेरे सुख को,
एक चाय की प्याली की खातिर अब उन्हें तरसते देखा है।

मैय्या जो तुझको बचपन में कहती थी...  आ मेरे कान्हा .... ,
उस भोली जसुदा मां को अब कान्हा से डरते देखा है।

तुझे ,राह में थक जाने पर जो कंधों पे बिठा कर चलते थे, 
उन बाबा के  पां..  मुड़ जाने पर उन्हें गिरते पड़ते देखा है।

तेरी मैय्या जो तेरी  ख़ातिर दिन रात थी रोज जगा करतीं, 
उन्हीं वृद्धा की खटिया आगे से  तुझे चुप्प खिसकते देखा है। 

तेरे बाबा जिसने बनवाया था तेरे ही सुख को ये मकां ,
अब उन्हीं की शान में तुझको बेजा  फ़िकरे कसते देखा है।

तेरे बाबा ने तो घुमवाया था  तुझको कितने मेलों मे ,
अब उनको तीर्थ ले जाने से तुझे साफ़ नुकरते  देखा है।

तेरी मां जो तनिक तेरे रूँदन पर सीने से लगाया करती थी, 
उनके रोगी हो जाने पर.. तन्हा कर्राहते देखा है।

नवरात्रों में जो कलश बिठा करते हैं माता का पूजन ,
उनको अपनी मां की खातिर कभी कुछ नहीं करते देखा है।

शिवरात्रि पर जो चढ़ा के जल..  बाबा  नमः शिवाय  जपा करते,
उन्हें अपने बाबा के आगे..पर कभी न  नमते  देखा है। 

जिन अम्मा बाबा ने तुझ को मांगा  था प्रभु से मन्नत कर ,
उन को  स्वयं की ही रचना द्वारा आहत होते देखा है।

सुनो...  , 
सुनो ,मात पिता बगिया और माली,  हम संताने नन्हे फूल,
रंग और खुशबू उन्हीं  से पाते , हम उनके चरणों की धूल।
हम उनके चरणों की धूल। 


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