By Rakshita Sah

उसे हिदायत दी गई
तन को ढक कर चलने की
उसके वस्त्र प्रमाण थे
उसकी निर्लज्जता का
पर वो अभागन क्या करे
जिसने बुर्का पहना था?
उसे रात के सायों के
ख़ौफ़ से चेताया गया
अँधेरे ही तो दुश्मन थे
काली स्याही उसके जिस्म पर
पर वो अभागन क्या करे
जिसे उजालों ने लूटा था?
बाहर निकलना भूल होगी
दुनिया की नज़रें पड़ेंगी ही
परायों के बीच बैठी थी
दिल में डर तो होना था
पर वो अभागन क्या करे
जिसे अपनों ने दबोचा था?
बातें मत करना जहान से
समझदारी इसी में है
गद्दार तुम्हारे लफ़्ज़ ही तो हैं
जाने कौन क्या अर्थ समझ ले
पर वो अभागन क्या करे
जिसने बोलना तक ना सीखा था?
कपड़ों से तन ढक लिया
उजालों का आवरण भी था
अपनों का आँचल थाम लिया
ख़ामोशी उसका आभूषण भी था
पर वो अभागन क्या करे
कफ़न जिसकी आबरू तब भी बन गया?