By Rakshit Mishra
मज़दूर हैं हम साहब
मजबूरी है हमारी बहुत मज़बूत,
भुजाएं ही सिर्फ हैं हमारी ताक़त,
और जो हैं बहुत अद्भुत।
मज़दूर हैं हम साहब
न हमारा कोई घर है,
ना ही कोई ठिकाना।
जब तक न मिले दिन का कोई काम,
नहीं करते हम काम मिलने तक आराम।
मज़दूर हैं हम साहब
न है कोई हमारे पास तय रोज़गार,
और न ही है कोई निश्चित पगार।
जब जो मिल जाए काम,
हम कर लेते हैं,
और बदले में जो भी दे दे दाम,
हम रख लेते हैं।
मज़दूर हैं हम साहब
हमारा भी है बहुत महत्व,
समाज को है हमारी सख्त ज़रूरत।
न बनता है कोई भवन और न ही दुकान
बिना दिए हमें काम।
बस उस काम का न मिलता है कोई
उचित दाम।
मज़दूर हैं हम साहब
भविष्य की बात हम नहीं करते,
जीते हैं वर्तमान में।
मिलता है अगर काम तो हम खाते हैं,
नहीं तो हरी के गुण गाते हैं।
मज़दूर हैं हम साहब
हमारा भी परिवार है,
उन्हें हमसे और हमें उनसे
बहुत प्यार है।
हमारे ही ऊपर पूरा
उनकी ज़िम्मेदारी का भार है।
जब कभी आता है त्योहार,
मचता हमारे दिल में हाहाकार।
परिवार में होता है बहुत उमंग,
पर हमारे दिल की कट जाती है पतंग।
औरों के घर जल रहे होते हैं दियें,
और बांट रहे होते हैं एक-दूजे को उपहार,
और हम सोच रहे होते हैं — कैसे दिलाएं
अपने परिवार को त्योहार का विशेष आहार।
मज़दूर हैं हम साहब
जब कभी बच्चा हमारा मांगता है कोई खिलौना,
तो हम बना देते हैं कोई बहाना।
कर देते हैं कोई झूठा वादा,
और दिला देते हैं उसको दिलासा।
हम भेज तो देते हैं बच्चे को सरकारी स्कूल,
पर न मिलती है वहां शिक्षा, न ज़िंदगी का उसूल।
मिलता है तो सिर्फ़ कागज़ों में शिक्षा का अधिकार,
और मिड डे मील का आहार।
मज़दूर हैं हम साहब
जब घर में कोई पड़ जाता है बीमार,
या आ जाती है हम पर मुसीबतों का पहाड़,
और खतरे में पड़ जाता है हमारा आधार,
तो हमें लेना पड़ता है उधार।
और बैंक नहीं देता है हमें उधार,
क्योंकि हमारे इनकम का न कोई आधार।
तो फिर जाते हैं सूदखोर के पास,
और लेते हैं उधार — और हज़ार के बदले में
चुकाते हैं दस हज़ार।
मज़दूर हैं हम साहब
बीमारी से बहुत डरते हैं,
जब पड़ते हैं हम बीमार,
पूरा परिवार हो जाता है लाचार।
इलाज कहां से हो,
पैसा जमा नहीं होता हमारे पास चार।
मज़दूर हैं हम साहब
जब हो जाते हैं हम बूढ़े,
और भुजाएं देती हैं जवाब,
और न रहते हैं किसी काम के,
तो हो जाते हैं हम
केवल राम के।
मज़दूर हैं हम साहब
न मिलता है हमें कोई अंशदान,
न है कोई हम पर मेहरबान।
न शासन और न प्रशासन —
शायद उनकी जनगणना में
छूट गया है हमारा नाम।
और सब हैं हमारी परेशानी से अनजान।
मज़दूर हैं हम साहब
मज़बूत है हमारा इरादा।
कभी तो भगवान, शासन और प्रशासन
होंगे मेहरबान और करेंगे हमारी,
परेशानियों का समाधान।