By Rajesh Kumar

(अंखियों के झरोखों से)
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उसके खिलाफ कुछ भी सुनना गवारा नहीं है,
मेरा यार आशिक जरूर है पर आवारा नहीं है।
उसकी आंखों में नशा रहता है एक जमाने का,
वो तनिक भी मौहबत में,कभी नकारा नहीं है।
माना उसके गर्दिश में हैं, सितारे कुछ अरसे से,
पर मिलके कोई नहीं कहता,वो प्यारा नहीं है।
ये जो बड़े ख़ामोश से अल्फाज लिखता हूं मैं,
कभी अकेले पढ़ना,कोई लफ्ज बेचारा नहीं है।
कट जाता है सफर जिंदगी कुछ इसी सहारे,
कि बहते जाना है इसका कोई किनारा नहीं है।
माना कि वो बहक जाते हैं महफिल में अकसर
पर 'राज'तेरे शिवा उसका कोई सहारा नहीं है।
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@राज ढुल