By Rajana Tulsyan
पेड़ हमें लगाने हैं,
पानी हमें बचाना है,
प्लास्टिक हमें हटाना है,
बच्चों को यह सिखाना है —
पर्यावरण को बचाना है!
कटे पेड़ तो हम अड़ जाएँ,
बहे पानी तो हम आगे आएँ,
हरियाली को हम लौटाएँ,
बूंद-बूंद हम बचाएँ।
बारिश की बूंदें गिरती जब-जब,
इकट्ठा करें उसे तब-तब।
पैसों से भी न पाओगे,
प्यासे ही रह जाओगे,
बूंद-बूंद तरस जाओगे,
गर्मी से झुलस जाओगे —
पर्यावरण को अगर नहीं बचाओगे!
कपड़े के थैले अपनाओ,
प्लास्टिक को दूर भगाओ।
घर का कचरा घर में रखकर,
जी भर कर खाद बनाओ।
सोलर पैनल हर जगह लगवाओ,
बिजली को भी खूब बचाओ।
पैदल चलो या साइकिल चलाओ,
और अगर गाड़ी से जाना हो —
तो कार पूलिंग अपनाओ,
वायु शुद्ध बनाओ ।
पक्षियों का घर बनाएँ,
दाना भी उनको खिलाएँ।
पक्षी खाते हैं उन कीड़ों को,
जो फसलों को नुक़सान पहुँचाएँ।
बूंद-बूंद से बनता सागर,
अब तो प्यारे समझ जाओ।
छोटी-छोटी कोशिश करके,
पर्यावरण को तुम बचाओ!
Well said bhavi……each n every word is priceless…. hope so everyone follows every bit of it……..so that coming generation can brethe , eat n drink healthy…
Very nicely described bhabhi. Your feelings can be felt in these flawless words.
Such beautiful words woven with care for nature. Loved this! A powerful message wrapped in poetic beauty. Nature surely deserves this kind of voice.