एक चिट्ठी मेरे दोस्तों के नाम – Delhi Poetry Slam

एक चिट्ठी मेरे दोस्तों के नाम

By Ragini Pradhan

बहुत ही मशगूल हो,
अपने आबोदाने में,
ये माना हमने,
कभी इस कमबख़्त मशरूफ़ियत से,
कुछ लम्हे तो चुराया करो!

कभी याद करो, कुछ बात करो,
कभी यूँ ही मन बहलाया करो!

हम भी तो मुन्तज़िर हैं,
तुम्हारी नज़रे इनायत के,
रक़ीब नहीं, कोई ग़ैर नहीं,
कभी यूँ ही बेसबब बुलाया करो!

निगाहों से दूर, तो दिल से दूर,
ये हकीकत नहीं, फक़त एक फ़साना है।
लोग तो ग़ाफिल, यूँ ही फलसफ़ा लिखा करते हैं,
ऐसी बातों पे यकीं, न लाया करो!

दिल से दिल को राह होती है,
तुमने भी ज़रूर सुना होगा,
कभी, कही-सुनी भी आजमाया करो!

दोस्त ही बस हमराज़,
और दोस्त ही हमनवा,
चाहे शिकवा करो, या करो गिला,
तुम खुश रहो और रहो सलामत
करेगा हरदम सिर्फ़ यही दुआ!

तो अपना तो है, फक़त इतना सा,
अपने दोस्तों को मशवरा,
पलटिए कुछ पुरानी क़िताबों का सफ़ा,
और कीजिए कुछ बिसरी यादों को ताज़ा,
इन रिश्तों से महरूम हम और तुम,
जैसे बिना नमक़ के ज़िन्दगी
बेस्वाद और बेमज़ा!

ये तो रूहानी रिश्ते हैं,
सब को नसीब होते नहीं,
मुकद्दर के धनी होते हैं,
जिनको खुदा करता है अता!

कब के बिछड़े दोस्तों से, कभी तो,
मिला कीजिए ख्वाबों में,
कि जिस तरह सूखे हुए फूल
मिलें किताबों में!

हँसी-ठहाके, खिलखिलाहटें,
वो अपनापन, और वही पुरज़ोर गर्मजोशी,
कभी शिकायतें दौराँ, कभी तारीफों के पुल,
और कभी किसी की टांग खींची,
आओ फिर गुनगुनी सी धूप में मिलकर बैठें,
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें,
आओ फिर कलेजा हल्का करें,
कुछ दुःख-सुख साझा करें!!


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