By Radheshyam Rai
लाल-लाल कहते-कहते, लाल काला हो गया!
रोज़ एक निर्दोष, अब उसका निवाला हो गया!
दामिनी, रुचिका, गीता, बालिका, वृद्धा सभी...
अब नहीं नारी सुरक्षित — दूध हाला हो गया!
लाल-लाल कहते-कहते, लाल काला हो गया!
रोज़ एक निर्दोष, अब उसका निवाला हो गया!
अपनी ही परछाईं से डरने लगी ममता भी अब,
जब से उसका पुत्र भी बंदूक वाला हो गया!
माँ ने अपनी कोख को देखा था फूलों की तरह,
जाने कैसे कोख उसकी शूल वाला हो गया!
क्यों वे शर्मिंदा हों अपनी बेहयायी पर भला?
दिल तो काला था ही उनका, मुँह भी काला हो गया!
लाल-लाल कहते-कहते, लाल काला हो गया!
रोज़ अब एक निर्दोष उसका निवाला हो गया!
Beautiful poem with great message 🙏
Beautiful poem.
My father has written this poem ..
Congratulations papa ji