By Rachita Pati

दीवार है, क्या इसलिए जंग है छिड़ी
या है जंग, इसलिए बन रही हैं दीवारें?
एक इंसान की नासमझी के लिए लाखों बेक़सूर जल रहे हैं,
लाखों बच्चे अनाथ, और माँ-बाप बेऔलाद हो रहे हैं।
क्या सिर्फ़ जंग ही है जो मुश्किलें हल कर देगी,
या ये बस अपने ओहदे को और ऊँचा करने की
एक घिनौनी सी चाल है?
बख़्श दो उन मासूमों को जो ख़ौफ़ में अपनी ज़िन्दगी जी रहे हैं,
बख़्श दो उन जवानों को जो अपनी दुनिया छोड़,
अपने देश पर मर मिटने के लिए खड़े हुए हैं।
बख़्श दो हर उस इंसान को जो इंसानियत पर भरोसा रखता है,
बख़्श दो उन सारे जीव-जंतुओं को
जो बिना किसी ग़लती के मारे जा रहे हैं।
छोड़ दो ये जंग, जिसमें नुक़सान के सिवा कुछ हासिल नहीं होता।
मीलों दूर तक बस बंजर ज़मीन और बेघर भटकते इंसान।
दीवार है, क्या इसलिए जंग है छिड़ी
या है जंग, इसलिए बन रहे हैं दीवारें?
Fabulous poem .🔥