अश्क़ – Delhi Poetry Slam

अश्क़

By Rachana Mishra

कैसे कहूं कि शाम
से एक नमी सी है
अश्कों की शक्ल लिए
ये तेरी यादों
की मैकेंशी सी है

ये अंतहीन सा
सिलसिला
मेरे अश्कों का
जो अक्सर मुझसे
मिला करता है

कुछ और नहीं है
मांगता ये
बस नाम तेरा
लिया करता है

हां, कुछ बेबाक सा
है, ये जो
छुपकर है बैठा हुआ

बेतकल्लुफ है बड़ा
ही, जो बेलिहाज़ होकर
मुझसे मिला करता है

मै भी इसकी
फितरत देखती हूँ
कि कुछ संगदिल सी
इसकी शख्शियत
देखती हूँ

औरों से मिले
इसे ज़माना हुआ....
क़ैद है तेरे साए में
एक ज़माना हुआ

सहमा सा रहता है
कुछ इस क़दर.. कि
तेरे सिवा नहीं है इसे
किसी की ख़बर

कहने को तो है मेरा
पर, तुझमें है खोया हुआ
कुछ बेवफा सा है ये
क्या करूं इसकी
कैफियत बयां

ओढ़कर झूठी सी हसीं
लोगों से मिला करती हूं
कैसे कहूं .....कि अब
इन अश्कों संग ही
जिया करती हूं

जो मिलोगे अब
तो देख लेना
अश्क़ों की ये मनमानी
देख लेना

देख तुम्हे ये भर आएंगे
कुछ टूटे हुए से हैं
भर आएंगे

तुम रोक सको तो
रोक लेना
इन अश्कों की मनमानी
रोक लेना

कि कैसे कहूं.....
शाम से एक नमी सी है
अश्कों की शक्ल लिए
ये तेरी यादों की
मैंकशी सी है........


8 comments

  • Bahut sundar,👌✨

    Ab jaldi hi live sunna chahte hai,, 🥰

    Sandhya
  • हमारी रचना की अद्वितीय रचना बहुत बधाई 👌♥️

    Vandana Singh
  • Bhavuk kar dene waali rachna

    Sumita
  • Bhohot sundar

    Aarti
  • Advitiya rachna ,man ko chu lene wali
    Sadhuwad

    Anil Arora
  • Beautifully curated!!

    Saachi
  • दिल को छू लेने वाली कविता है, बहुत सुन्दर,आपसे आशा करते है की आगे भी इसी तरह की रचना होगी ।

    Meenakshi
  • Bahut hi achhi kavita hai, dil ki gahraiyon se likhi hui baat hai. Kavita likhe wali mam ko dher sari badhai

    Minal diwan

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