By Purnima Srivastava
सुन अजन्मी सुता की गुहार !
बापू ! जन्म मुझे लेने दो,
कुछ क़र्ज़े मेरे सिर हैं,
जो जी कर, मुझे चुका लेने दो !
नौ माह से अपनी कोख़ में मईया,
जतन से मुझको ज़िला रही है!
ख़ुद पीती है घोर हलाहल ,
मुझे सुधा वो पिला रही है !
एक बार लेना तू गोद में ,
लिंग- भेद सब मिट जायेगा!
जब सीने से लगूँगी तेरे ,
प्यार का सोता फट जायेगा !
मैं तेरे आँगन में ,
नन्ही गौरैया सी चहक उठूँगी !
तेरे सूने शुष्क़ हृदय में,
शहनाई की गूंज बनूँगी !
जो सुत तेरा निकला कपूत,
क्या वंश बेल तब भी फूलेगी ?
कीर्ति पताका तात मेरे !
क्या आँगन में तब भी झूलेगी ?
जिस कोख़ से तूने जन्म लिया ,
वो भी तो किसी की बेटी थी !
सुख- दुख में छाया बनी तेरी ,
मेरी माँ भी इक बेटी है !
मैं सुता तेरी, लेती हूँ शपथ,
मान तेरा मैं सदा धरूँगी !
आज तेरे माथे की सिलवटें,
कल अपने कृत से, जिन्हें हरूँगी !
कन्या भ्रूण की हत्या का ,
तुम अपने सिर क्यों पाप ले रहे ?
था हक़ तुम्हें तो बीज बो दिया !
क्यों हक़ जीने का छीन ले रहे ?
बस एक बार बेटी कह कर,
सीने से जो मुझे लगाओगे ,
स्पन्दन से जो सन्देश मिला,
तो निस्पन्द मुझे तुम पाओगे !