मैं पत्थर हूं – Delhi Poetry Slam

मैं पत्थर हूं

By Punam Bhu

विधा -पद्य
शीर्षक -मैं पत्थर हूॅं ....
रचनाकार -पूनम भू

मैं पत्थर हूॅं
अकड़ता नहीं
बिगड़ता नहीं
सिकुड़ता नहीं
बस टूट जाता हूॅं
बदलता नहीं
जलता नहीं
पिघलता नहीं
बस युगों का साक्षी हूॅं
विलाप नहीं
संताप नहीं
मरता नहीं
बस फिर भी अडिग हूॅं
कायर नहीं
दलबदलू नहीं
ख़ुदग़र्ज़ नहीं
बस फिर भी मिसाल हूॅं
क्यों कि मैं एक पत्थर हूॅं

मैं ईश्वर का घर हूॅं
सड़क हूॅं
क्रूर भी हूॅं
तीनों कालों में हूॅं
विशाल पर्वत हूॅं
समुद्र के अंदर हूॅं
मणियों के बीच हूॅं
मैं इंसान नहीं हूॅं
भगवान भी नहीं हूॅं
क्यों कि मैं पत्थर हूॅं में

मैं पत्थर हूॅं
दलदल से बचाता
न झुर्रियों से वास्ता
दफ़न हैं सैकड़ों कथाएं
फिर भी शांत हूॅं
हथौड़े की मार से
टूट कर बिखर जाता
कभी शिव बन पूजा घर में
सजा दिया जाता
कभी बर्फ़ की मार झेलते
कभी जूतों से रौंदा दिया जाता
किसी की दीवार बन जाता
पान की पीकों से सजा दिया जाता
मूत्रों की बदबू से
दबा दिया जाता
कभी नवल जोड़ो की
तस्वीरों में उकेर दिया जाता
चिलचिलाती धूप में
स्थिर रह जाता
क्यों कि मैं पत्थर हूॅं ।।

मैं पत्थर हूॅं
प्रतीक्षारत हूॅं राम का
पगधूलि का स्पर्श पाने का
शिला निश्चल कहलाने का
क्या किसी दिन
पत्थर दिवस मनाने का
पत्थरों का जुलूस
मलबे में तब्दील
होकर सभा करेगा
शोषण के खिलाफ
बस ख़ून से सना रहेगा
क्यों कि मैं पत्थर हूॅं ।।
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