Priyanka Kumari – Delhi Poetry Slam

Mere Papa

By Priyanka Kumari

 

कांधे पर जिम्मेदारियों का बोझ लिए,

पौ फटते घर से निकल जाते हैं

खाली जेब से खरीदते खुशियां कायनात की,

मेरे पापा बहुत कमाते हैं।

कानों में गूंजते जुमले बॉस के, और

चाय की चुस्कियों में आंसू छुपाते हैं

दर्द का रेगिस्तान है आंखों में, और

हमें सपने वो चांद के दिखाते हैं

कहते नहीं कुछ भी जुबां से अपने,

ज़िंदगी गुलज़ार हो अपनी, इस ख्वाहिश में,

कतरा कतरा पिघलते जाते हैं

जेठ की गर्मियों में देकर कीमत अपने खून की,

ए सी कूलर में हमें बिठाते हैं

एक दिन बच्चे अफसर होंगे,

इस चाह में हर गम पी जाते हैं

फटे जूतों पर खुद के ध्यान नहीं,

हमारी जरूरत की हर शय खरीद लाते हैं,

खाली जेब से खरीदते खुशियां कायनात की

मेरे पापा बहुत कमाते हैं।।


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