By Priyanka Priya
कैसे कह दूं मर्द बूरे है,
सामाजिक जंजीरों से वो भी तो घिरे हैं
माना पुरुष प्रधान के विश्लेषण पर आ गया है घमंड उन्हें..
इससे ये कैसे छिपें -
उन्हें घर के बाहर की दुनिया का सारा बोझ उठाना पड़ता है,
घर की रोटी गोल बने..
उसके लिए खुद के घर से ही बाहर जाना पड़ता है,
बारिश ,आंधी ,गर्मी को हंस कर गले लगाना पड़ता है,
सारे मर्द बूरे नहीं होते,
ये भी लोगों को बताना पड़ता है।।
उनकी जिम्मेदारियां समाज बार-बार उन्हें बताता,
ऐसा करके वो हर बार व्यक्ति की खुशी से जीत जाता,
तुम्हारे आंखों में कभी आंसू नहीं आने चाहिए,
ये उनके कानों में दोहराता।
अपना दुख किसी के पास कहने जाओ तो "तुम मर्द हो"
ये सामने से आ जाता।।
मनुष्य होकर भी तुम्हारे अंदर मनुष्य वाले गुण नहीं होने चाहिए
लिखा है कि,
मनुष्य होकर भी तुम्हारे अंदर मनुष्य वाले गुण नहीं होने चाहिए
और पीड़ा में भूल से आवाज निकल आए,
नाह !!
ऐसी औरतों वाले सूर नहीं होने चाहिए,
हर मर्द धरती में बहादुर ही होने चाहिए।।
बहुत पूछने के बाद,
उसने कहा नृत्य संगीत पसंद है,
क्या कहा-
उसने कहा नृत्य संगीत पसंद है, भोजन बनाना भी बेहतरीन पसंद है..
हाथ बटां देता हूं घर पर, कभी-कभी चंपी भी कर देता हूं बहनों के सर पर,
ये बातें मैं जब भी लोगों को बताता पता नहीं क्यों हर बार मजाक का पात्र बन जाता...
मां तो खुशी से दुनिया को बताती बेटे पति के पसंद का खाना बनाया है,
मेरी मां तो खुशी से बताती बेटे पति के पसंद का खाना बनाया है।।
तो फिर मैं क्यों ऐसी बात समाज के आगे रखने से डर जाता,
मुझे भी उनके पसंद की चीज करनी है,
ये बात मैं खुद के घर पर भी नहीं कह पाता...
काश मैं भी अपनी मां की तरह सारी बातें सह पाता...
दुनिया की मानो तो सारी शक्तियां मर्दों में है,
इस समाज की मानो तो सारी शक्तियां मर्दों में है,
ऐसी बातें होती तो मैं इंसान से ईश्वर नहीं बन जाता,
काश इस मर्द -औरत की लड़ाई से दूर ,
मैं खुद को इंसान कह पाता..
खुद को बच्चा समझ कर मैं अपना सर सहलाता।।
फिर हंसने रोने का रोक-टोक नहीं,
शा.यद मैं मर्द नहीं एक अच्छा इंसान बन जाता।
इसी कशमकश में तो सारे घिरे हैं,
तो कैसे कह दूं मर्द बूरे है.....
You gave me the opportunity to express my thoughts, thank you in your heart