अधूरा इश्क़ – Delhi Poetry Slam

अधूरा इश्क़

By Priyank Sharma

एस कदर खोया था अपने ख्यालों में,
देख रहा था किसी को चांद या सितारों में,
मेरे लिए क्या चांद क्या सितारे,
उसके बिना सुने थे सारे।

यू बैठा आस्मा देख रहा था,
पर उस आस्मा में अजब सा चेहरा देख रहा था,
जाने कब दिन से रात हो गयी,
हमने प्यार की चादर ओड़ी, या वो सो गयी।

सुबह-शाम तुझे सोचता रहूँ,
तेरी तस्वीर को कविता में पिरोहता रहूँ,
कविता के बोल बड़े मीठे थे,
तेरे इश्क़ में वो भी फीके थे।

जी चाहता है सितारा समझ तुझे छू लूं,
तुझे सीने से लगाऊँ और रोक लूं,
लेकिन तू सितारा है,
ना जाने कितनों को प्यारा है।

इश्क़ की चादर से लिपटा हूँ मैं,
तेरे प्यार को पाने में मरमिटता हूँ मैं,
तुझे चाहूं तो कैसे चाहूं,
ये अधूरे इश्क़ में जी ना पाऊँ।

क्या मजबूरियां थीं जो एक-दूजे को खो बैठा,
वो प्यार की डोर तोड़ बैठा,
जो प्यार पूरा था, आज अधूरा हो बैठा।

ये प्यार का फूल, हर कहीं खिलता है,
हर किसी को टुकड़ों में मिलता है,

इसे जोड़ा तो पूरा मिलता है, वरना अधूरा मिलता है।


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