By Priti Nandkeolyar
सच और झूठ
सच की चादर ओढ़े
झूठ को करीब से देखा है
सच कितना दुखी, कितना चिन्तित
झूठ कितना सुखी, कितना मुत्मइन
सच अकेला, न कोई साथी न संगी
झूठ के मित्र अनगिनत,
कभी न साथ छोड़ने वाले, अतरंगी
वाह रे संसार को रचने वाले
क्या संसार बनाया तूने
झूठ के आगे सच को झुकाया तूने
सच चलता सहम के, सर झुकाके
झूठ चलता गर्व से, सर उठाके
सच से सभी कतराते, दूर रहते
झूठ के पास सब ऐसे मंडराते
जैसे भंवरे फूलों पे
सच चुप रहता, घबराता
झूठ बढ़-बढ़ के बोलता, इठलाता
सुना है सच की सदा जीत होती है
फिर झूठ क्यों जीतता है बार बार
वाह रे संसार को रचने वाले
कैसा संसार बनाया तूने
झूठ के आगे सच को झुकाया तूने