Maa(मां) – Delhi Poetry Slam

Maa(मां)

By Preeti Raghuvanshi

वो खुद कुछ कहती नहीं..पर जान सब कुछ जाती है....
हम उसकी ना माने... पर वो मान हमारी जाती है....
हम मांगे एक रोटी... पर वो लेकर दो ही आती है....
खातीर वो हमारे हर किसी से भी लड़ जाती है....
हां वो मां कहलाती है,... हां वो मां कहलाती है!!!
रूप अनेक है उसके,, हमारी खातिर वो कुछ भी बन जाती है...
बनकर पहली टीचर वो हमको ज्ञान दिलाती है,...
भूख लगे जो तो वो हमको पकवान खिलाती है...
जो तपे माथा हमारा तो डॉक्टर भी बन जाती है ....
सुंदर सुंदर ड्रेस बनाकर फिर दर्जी कहलाती है....
मोल क्या लगाओगे उसका, जो खुद अनमोल कहलाती है...
हां वो ही मां कहलाती है!!!! हां वो मां कहलाती है!!!


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