कलयुग का कोहराम – Delhi Poetry Slam

कलयुग का कोहराम

By Pratha Kaushik 

रामराज्य आएगा, ये हम सबकी आशा है,
परंतु कलयुग में तो हर ओर छाई एक निराशा है।
कलयुग के कोहराम से कांप रही ये काया है,
ना जाने कहां से आया ये घनघोर साया है।
इस कठोर समय के कारण भारत मां भी रो रही,
रोज अपने काबिल बेटे और बेटियां खो रही।
इंसान के दरबार में पीड़ित को स्थान नहीं मिला, इंसाफ की पुकार को बस इंसाफ ही नहीं मिला।
एक मरता हुआ बाप गुहार लगाता रह गया,
अपनी औलाद पाने को तिरस्कार भी सह गया।
उस संसार से थके बेटे के मां-बाप आज भी लड़ रहे, अपना पोता पाने को वे तिल-तिल करके मर रहे। लेकिन अपनी औलाद तो उस माँ ने भी खोई थी,
जिसकी बेटी रातभर चीख-चीख कर रोई थी।
औरों की जान बचाने वाली वह नादान एक लड़की थी, जिसकी जान उन दरिंदों ने हर ली थी।
कलयुग की मोमबत्तियों ने ना जाने कैसा द्वापर की महाभारत का स्थान लिया,
उस बेगुनाह के गुनहगारों को ना जाने कैसे जाने दिया।
मुजरिम खुलेआम घूम रहे और मासूम खुदखुशी कर रहा।
लेकिन उन 18 साल के बच्चों का क्या, जिनकी आंखों में डॉक्टर बनने का सपना पल रहा?
बच्चों की सालों की मेहनत को हरी पत्त्त्ती ने पीछे छोड़ दिया, अब लगता है कहीं भगवान ने धरती से संपर्क तो नहीं तोड़ दिया।
अब आबादी की आस्था में आस्था का अस्तित्व नहीं, पूजा में सब कुछ है बस भक्ति का व्यक्तित्व नहीं।
इस स्नान में जाने वाले ना जाने कितने ही वापस न आए,
पाप धोने की भगदड़ में अपने ही प्राण गंवाए।
महीनों में एक बार मंदिर जाने वाला भी आज कुंभ नहा रहा,
और गरीब आज भी दर दर की ठोकर खा रहा
और मध्यमवर्ग मध्य में ही फंस गया,
दो वक्त की रोटी के लिए मजदूर बनकर बस गया ।
भोले मजदूर की कमाई का उचित बंटवारा होता है,
आधे किश्तों और आधे टैक्स में खत्म होता है।
सबकी दुविधा बड़ी है और सभी परेशान हैं,
खून के आंसू रो रही इन बच्चों की मां है।
न जाने आखिर कैसा ये कलयुग का कोहराम है।


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