By Prasan Shirdhonkar

कई दफ़ा उसे देखा मैंने,
ख़ुद का क़त्ल करते हुए,
बनाए रखी उसने मुस्कुराहट चेहरे पर,
दूसरों को ज़िंदा करते हुए।
ये लफ़्ज़ भी उसकी तारीफ़ अब क्या करें,
इन्हें कम पड़ते देखा, उसे समझते हुए,
बनाए रखी उसने मुस्कुराहट चेहरे पर,
दूसरों को ज़िंदा करते हुए।
जो गुज़ारे थे उसके साथ कुछ हसीन लम्हें,
याद करता है दिल, उन्हें झुठलाते हुए,
बनाए रखी उसने मुस्कुराहट चेहरे पर,
दूसरों को ज़िंदा करते हुए।
है अब वो पास नहीं लेकिन,
ख़याल उसका आ ही जाता है,
रोता था मेरे ही कंधे पर, आँसू छुपाते हुए,
बनाए रखी उसने मुस्कुराहट चेहरे पर,
दूसरों को ज़िंदा करते हुए।
वाह भाई, ग़ज़ब लिखा है। बहुत दिल से निकली हुई लगती है ये कविता।